Editor’s Note: This piece was originally written in Hindi, find the English translation appended below.
आज से साढ़े पांच साल पहले मैं शिव कुमार के साथ जेल में रहा था। लगभग 16 दिन हम दोनों ने सोनीपत जेल में एक ही बैरक में बिताए। मैंने पहली बार देखा कि कैसे जाति की वजह से उसे सफाई के काम के लिए बार बार कहा जाता और हमने इस मानसिकता के खिलाफ संघर्ष किया। उस समय भी हमें झूठे केस में ही फंसाया गया था। हत्या का प्रयास, निजी संपत्ति में आगजनी, महिला शिक्षक की साड़ी फाड़ने जैसे संगीन आरोप हमारे ऊपर लगाए गए थे। कुल 40 महिला पुरुष गिरफ्तार किये गये थे, 26 महिलाएं और 14 पुरुष।
शिक्षा के अधिकार की धारा 134-A1 के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिले के लिए संघर्ष पूरे हरियाणा में चला हुआ था। सोनीपत में हम छात्र एकता मंच की तरफ से इस संघर्ष का हिस्सा थे। निजी स्कूलों की पढ़ाई के नाम पर मचाई जा रही लूट के खिलाफ चल रहा ये संघर्ष तीखा हो गया। अभिभावकों और छात्रों की एकता के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और गरीब बच्चों को कानून के अनुसार 15% और 20% मुफ्त दाखिले देने पड़े जिसकी वजह से सोनीपत के सारे प्राइवेट स्कूल की मंडियों के मालिकों ने एका कर लिया और साथ लिया कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त राजनेताओं को। जिन मंत्रियों को जनता का साथ देना चाहिए था उन्होंने लुटेरों के साथ मिलकर जनता के खिलाफ साजिश की और पुलिस के साथ गठजोड़ करके झूठे मुकदमों के तहत अभिभावकों और छात्रों को जेल में डाल दिया गया। लेकिन जनता की एकता और संघर्ष की जीत हुई थी और हम सब जेल से बाहर आये थे।
उन 16 दिनों में हम खूब पढ़े। एक दूसरे से सीखा और सिखाया। हमें समझ आ गया था कि जब हम अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करेंगे तो राजनेता, पुलिस और लुटेरे एका करके न्याय के लिए लड़ने वालों को ऐसे ही जेल में डालेंगे, मारपीट करेंगे शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से तोड़ने की कोशिश करेंगे और इससे निपटने का जो रास्ता है वो है: जनता की जागरूकता,एकता और जुझारू संघर्ष। जेल से बाहर आने के बाद भी ये संघर्ष हमेशा जारी रहा। हमने बहुत सारे संघर्ष साथ में किये हैं और गिरफ्तारी भी हुई हैं। शिवा ने सोनीपत आईटीआई से पढ़ाई करने के बाद कुण्डली औद्योगिक क्षेत्र में कंपनियों में काम करना शुरू किया। कंपनियों में मजदूरों की हालत से रूबरू होने के बाद, इन हालात को बदलने के लिए ही शिव कुमार ने मजदूर अधिकार संगठन की नींव डाली जो इस क्षेत्र के मजदूरों की आवाज बनी। इन्होंने दिन रात मेहनत करके मजदूरों के हक की आवाज को बुलंद किया जिसकी वजह से ये संगठन और इसके सदस्य कंपनी मालिकों, कंपनियों के प्राइवेट गुंडों और पुलिस को खटकने लगे थे। किसान आंदोलन में भी यें संगठन पूरे जी जान से सक्रिय हुआ। इन्होंने मजदूरों को समझाना शुरू किया कि अगर खेती में भी कंपनियां आई तो बुनियादी जरूरत की चीजें और भी ज्यादा महंगी हो जायेंगी जिसकी वजह से मजदूर की जिंदगी और भी कठिन हो जाएगी। सैंकड़ों से लेकर हजारों की संख्या तक मजदूरों ने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किए। किसान मजदूर एकता के नारे को मजदूर अधिकार संगठन ने किसान मोर्चे के स्टेज से उतारकर जमीन पर लागू किया। इसके साथ ही उन्होंने मजदूरों की ठेकेदारों और कंपनियों द्वारा हड़पी गई दिहाड़ी वापिस दिलवाने का संघर्ष भी जारी रखा और 150 से ज्यादा मजदूरों की साढ़े पांच लाख रूपए के आस पास दिहाड़ी वापस भी दिलवाई। मजदूरों ने लेबर कोर्ट और पुलिस थानों में समय गंवाने के बजाय संघर्ष का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया था। मजदूरों की इसी राजनीतिक चेतना से डरकर पुलिस ने ये कार्यवाही शिवा और नौदीप पे की है।
जो आज शिव कुमार के साथ जो हो रहा है उससे वह पहले से ही परिचित है। सारे कानूनों को ताक पर रखकर पुलिस ने बदले की भावना के तहत कंपनी मालिकों के निजी गुण्डों की तरह काम किया है। शिव कुमार का 16 जनवरी को पुलिस ने अपहरण किया। उसके साथ लगातार सात दिन तक मारपीट की गई। ऐसी यातनाएं दी गईं जिनको लिख पाना भी मुश्किल हो रहा है। न तो उसके घरवालों को बताया गया न ही उनके संगठन के साथियों को। 24 जनवरी को उसे कोर्ट ले जाया गया और कोर्ट ने बिना शिव कुमार का पक्ष सुने 10 दिन का रिमांड दे दिया जबकि दस दिन का रिमांड आतंकियों का भी नहीं लिया जाता। 24 जनवरी को रात 9:30 बजे पुलिस वाले शिव कुमार के घर जाकर बोलते हैं कि अगर शिव कुमार आये तो उसको पेश कर देना और इतना बोलकर शिव कुमार की मां से दस्तखत करवा लेते हैं। इसका मतलब है कि पुलिसकर्मी शिवा की मां से जो दस्तखत करवा कर लाये हैं उसी के आधार पर कोर्ट में साबित करेंगे कि उन्होंने शिवा के घरवालों को सूचित कर दिया था जबकि उन्हें गुमराह किया गया। दस दिन के रिमांड के बाद यानी कि 2 फरवरी को शिवा को न्यायिक हिरासत में सोनीपत जेल में बंद कर दिया गया है। आज तक उससे न तो वकील को मिलने दिया गया है और न ही उसके घरवालों से। शायद प्रशासन उसके जख्म भर जाने का इंतजार कर रहा है।
पुलिस की ऐसी हरकतें क्या सन्देश देती हैं? जब गरीब आदमी हक के लिए लड़ता है तो उसे खूंखार अपराधी की तरह पेश किया जाता है लेकिन पुलिस जो बर्बरता करती है उसका हमारे समाज में सामान्यीकरण हो चुका है। इसी सामान्यीकरण का शिकार शिव कुमार है और इसी सामान्यीकरण से उसका संघर्ष भी है। हम सभी को इस सामान्यीकरण को तोड़ना जरूरी है।
शिव कुमार के परिवार की हालत
शिव कुमार के पिताजी सरकारी स्कूल के चौकीदार हैं जिनको हर महीने सिर्फ सात हजार रुपए ही मिलते हैं। कभी कभी दिन में खुली दिहाड़ी भी कर लेते हैं। मां सामान्य गृहिणी हैं। शिवा की तीन बहनें हैं और एक भाई है। 24 साल का शिवा पांच भाई बहनों में तीसरे नंबर का है। दो बड़ी बहनें हैं। सात सदस्यीय ये परिवार कितनी मुश्किल से गुजर बसर करता होगा? इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है।एक तो आर्थिक तंगी ऊपर से तथाकथित छोटी जाति का ठप्पा ज़िन्दगी को जितना मुश्किल बाहर बना देता है उससे कहीं ज्यादा मुश्किल जेल के भीतर होता है। फिर भी शिवा ऐसे ही मुस्कुराता है और इसकी यहीं मुस्कान मुझ जैसे अनेकों को प्रेरित करती है और विरोधियों को परेशान।
शिव कुमार का संघर्ष बेहतर समाज के लिए है, इसलिए ये संघर्ष हम सबका संघर्ष है।
जसमिंदर टिन्कू शिवा के दोस्त और एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं । वे महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के छात्र और छात्र एकता मंच के सदस्य हैं।
1 हरियाणा शिक्षा नियमावली 2003 के नियम 134-A के अंतर्गत कोई भी गरीब परिवार का छात्र किसी भी निजी स्कूल में निशुल्क पढ़ सकता है। गरीब/बीपीएल/ईडब्ल्यूएस वे हैं जिनकी वार्षिक आय 2 लाख से कम या 2 लाख है। 134 ए अधिनियम के अनुसार प्राइवेट स्कूल की 10% सीटें बीपीएल / ईडब्ल्यूएस परिवार के छात्रों के लिए आरक्षित हैं।
My Journey with Shiv Kumar: A Serious Activist Hidden Behind a Lovely Smile, and Police Brutality | Jasminder Tinkoo
Five and a half years ago, I was in jail with Shiv Kumar. We spent about 16 days in the same barrack in Sonipat jail. For the first time I witnessed how he had to suffer due to caste discrimination inside prison. He was repeatedly asked to clean the toilet in the jail. We fought against this practice within prison. Even then we had been implicated in a fabricated case. Grave charges such as attempt to murder, destruction of private property, and tearing the saree of a female teacher were made out against us. A total of 40 people had been arrested on these charges, 26 women and 14 men.
Struggle for implementation of Rule 134-A1 of the Right to Education Act for ensuring admission of economically backward students to private school had been ongoing all over Haryana. In Sonipat, we were part of this struggle on behalf of Chhatra Ekta Mach. Our fight against the loot by private education institutions was intensified and the administration had to bow down to the unity of parents and students. Consequently, as per law they had to provide free admission to 15%-20% economically backward students. However, the owners of all the private schools of Sonepat got together with some so-called nationalist politicians. These politicians who should have sided with the public, instead conspired against them and in alliance with the police, parents and students were jailed under false cases. Nonetheless, the unity and struggle of the people won and we all walked out of prison eventually.
We read a lot in those 16 days that we were in prison together. We supported each other in this learning and teaching process. We had understood that whenever we were going to unitedly fight against injustice; politicians, the police and private institutions would also unite to oppress those fighting for justice. They would try their best to beat us, both physically and mentally. The only way to survive this fight is: awareness of the public, their unity and militant struggle. Even after coming out of jail, our struggle continued. Since then we have led many struggles together and have also been arrested for it.
After finishing his studies from ITI Sonepat, Shiv started working in companies in the Kundli Industrial Area. After observing the labour working conditions in the area, Shiv Kumar laid the foundation of the Mazdoor Adhikar Sangathan (MAS)to change their working conditions. The organisation became a voice for the workers of this region. Working day and night, the organisation and its members raised their voices for the rights of the workers and became a thorn in the side of company owners, their private goons, and the police. MAS participated in the Farmer’s Protest in large numbers. MAS began mobilising the workers on the issue that if private companies enter the agriculture sector as well, it would lead to a rise in prices of basic necessities and consequently labourers would suffer. Hundreds and thousands of workers demonstrated in support of the farmers. The call of Kisan Mazdoor Ekta was merely a slogan when shouted from the stage of Kisan Ekta Morcha, but it was actually implemented on the ground by the members of MAS. Along with this, MAS continued its struggle to claim the daily wages of workers nabbed by the contractors and companies. They managed to get back the wages of more than 150 workers, which approximated to Rs. 5,50,000. Instead of wasting their time in labor courts and police stations, workers had begun adopting the path of struggle. Fearing this political consciousness of the workers, the police have taken action against Shiv and Noudeep.
Shiv is already familiar with what he is going through today. Taking aid of various laws, the police acting like private goons hired by the companies have sought revenge from Shiv. Shiv Kumar was abducted by the police on 16 January. He was beaten up for seven consecutive days. I find it difficult to provide the details of the kind of torture that Shiv has gone through. Between 16th January and 31st January, neither his family members nor his comrades were informed of his whereabouts. It was later learnt that on January 24, he was taken to court where the court gave a 10-day remand without hearing Shiv Kumar or his lawyer. A 10-day remand is not even given for alleged terrorists. On January 24, at 9:30 pm, policemen showed up at Shiv Kumar’s house and told the family members that if Shiv visits the house, he should be presented at the police station. Without any other explanation, the police asked Shiv’s mother to sign on a piece of paper. It appears that the documents that the police hoodwinked Shiv’s mother to sign will be used in court as an arrest memo. This means that the policemen will prove in court that they had informed the family members of Shiv’s arrest, when in fact they have been misled all along. After a 10-day remand, that is, on February 2, Shiv was lodged sent to judicial custody in Sonepat Jail. Till date neither his lawyer nor his family members have been allowed to meet him. Perhaps the administration is waiting for the visible wound marks to heal.
What do these actions of the police tell us? When the poor fight for their rights, they are presented as dreaded criminals. However, the brutality that the police commit on an everyday basis has been normalized in our society. Shiv Kumar is the victim of this normalization of police violence and a struggle against this normalization is a part of his agenda. It is essential for us all to question this normalization in our society.
The condition of Shiv Kumar’s family
Shiv’s father is a watchman employed by a government school who receives only Rs. 7,000 per month. To sustain, he has to work as a labourer during the day. Shiv’s mother is a housewife. 24-year-old Shiv is the third of five siblings, with two elder sisters, one younger brother and a sister. How this 7-member family survives is anyone’s guess. The difficulties of economic hardship and belonging to Dalit community are not only struggles he has to deal with in the world outside, but they are no doubt made more difficult within prison. Even so, Shiv continues to smile and his smile inspires many like me and distresses the opponents.
Shiv Kumar’s struggle is for a better society, and this struggle belongs to all of us.
Jasminder Tinkoo is Shiv’s friend and an activist. He is a student of Maharishi Dayanand University and a member of the Chhatra Ekta Manch.
1 Under Rule 134-A of Haryana Education Rules 2003, a student of a poor family can study in any private school for free. Poor / BPL / EWS are those whose annual income is less than 2 lakhs or 2 lakhs. As per Rule 134A, 10% of seats are reserved for students of BPL / EWS family in private schools.