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जेल जीवन का एक रंग यह भी | विश्वविजय

फरवरी का महीना था। कड़ाके की ठण्ड धीरे -धीरे विदा हो रही थी। सूरज का तेज कोहरे के कोप पर भारी पड़ता जा रहा था। अब पूरे दिन कोहरे में नहीं ढका रहता था सूरज। सुबह के 9-10 बजते-बजते निकल ही आता था।

उस दिन भी सूरज निकल आया था। लेकिन ट्रेन कोहरे के कारण थोड़ी विलम्ब से चल रही थी। मैं सीमा को लेने स्टेशन पर गया था और वहीं से एसटीएफ़ की गिरफ़्त में आ गया। फिर माओवादी होने के आरोप में जेल चला गया। ख़ास यह कि मैं और सीमा साथ – साथ नैनी जेल इलाहाबाद में 7 फरवरी 2010 को कैद किये गए।

वैसे तो अपने जेल जीवन के अनुभवों को हम दोनों ने अपनी जेल डायरी ‘ज़िंदांनामा’ में बयां किया है। लेकिन जेल जीवन को दर्ज करते हुए कई पहलू हमसे छूट गए है, या यह कहें कि हमने छोड़ दिया।

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