जेल जीवन का एक रंग यह भी | विश्वविजय

फरवरी का महीना था। कड़ाके की ठण्ड धीरे -धीरे विदा हो रही थी। सूरज का तेज कोहरे के कोप पर भारी पड़ता जा रहा था। अब पूरे दिन कोहरे में नहीं ढका रहता था सूरज। सुबह के 9-10 बजते-बजते निकल ही आता था।

उस दिन भी सूरज निकल आया था। लेकिन ट्रेन कोहरे के कारण थोड़ी विलम्ब से चल रही थी। मैं सीमा को लेने स्टेशन पर गया था और वहीं से एसटीएफ़ की गिरफ़्त में आ गया। फिर माओवादी होने के आरोप में जेल चला गया। ख़ास यह कि मैं और सीमा साथ – साथ नैनी जेल इलाहाबाद में 7 फरवरी 2010 को कैद किये गए।

वैसे तो अपने जेल जीवन के अनुभवों को हम दोनों ने अपनी जेल डायरी ‘ज़िंदांनामा’ में बयां किया है। लेकिन जेल जीवन को दर्ज करते हुए कई पहलू हमसे छूट गए है, या यह कहें कि हमने छोड़ दिया।

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शिव कुमार के साथ मेरा सफ़र: एक प्यारी मुस्कान के पीछे गंभीर कार्यकर्ता और पुलिस की ज्यादती | जसमिंदर टिन्कू

Editor’s Note: This piece was originally written in Hindi, find the English translation appended below.

आज से साढ़े पांच साल पहले मैं शिव कुमार के साथ जेल में रहा था। लगभग 16 दिन हम दोनों ने सोनीपत जेल में एक ही बैरक में बिताए। मैंने पहली बार देखा कि कैसे जाति की वजह से उसे सफाई के काम के लिए बार बार कहा जाता और हमने इस मानसिकता के खिलाफ संघर्ष किया। उस समय भी हमें झूठे केस में ही फंसाया गया था। हत्या का प्रयास, निजी संपत्ति में आगजनी, महिला शिक्षक की साड़ी फाड़ने जैसे संगीन आरोप हमारे ऊपर लगाए गए थे। कुल 40 महिला पुरुष गिरफ्तार किये गये थे, 26 महिलाएं और 14 पुरुष।

शिक्षा के अधिकार की धारा 134-A1 के तहत गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिले के लिए संघर्ष पूरे हरियाणा में चला हुआ था। सोनीपत में हम छात्र एकता मंच की तरफ से इस संघर्ष का हिस्सा थे। निजी स्कूलों की पढ़ाई के नाम पर मचाई जा रही लूट के खिलाफ चल रहा ये संघर्ष तीखा हो गया। अभिभावकों और छात्रों की एकता के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और गरीब बच्चों को कानून के अनुसार 15% और 20% मुफ्त दाखिले देने पड़े जिसकी वजह से सोनीपत के सारे प्राइवेट स्कूल की मंडियों के मालिकों ने एका कर लिया और साथ लिया कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त राजनेताओं को। जिन मंत्रियों को जनता का साथ देना चाहिए था उन्होंने लुटेरों के साथ मिलकर जनता के खिलाफ साजिश की और पुलिस के साथ गठजोड़ करके झूठे मुकदमों के तहत अभिभावकों और छात्रों को जेल में डाल दिया गया। लेकिन जनता की एकता और संघर्ष  की जीत हुई थी और हम सब जेल से बाहर आये थे। 

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From Segregation to Labour, Manu’s Caste Law Governs the Indian Prison System | Sukanya Shantha

Editor’s Note: This article has been reposted with permission from the writer, Sukanya Shantha & The Wire, with illustrations by Pariplab Chakrabarty. It is also available in Hindi, Marathi, Urdu, Tamil, and Malayalam. This article, part of the series ‘Barred–The Prisons Project’, is produced in partnership with the Pulitzer Center on Crisis Reporting.

On his first day at the Alwar district prison, Ajay Kumar* was gearing up for the worst. Torture, stale food, biting cold and harsh labour – Bollywood had already acquainted him with the grisly realities of jails. “Gunah batao (Tell me your crime),” a police constable, placed at the undertrial (UT) section, asked him as soon as he was escorted inside a tall iron gateway.

Ajay had barely mumbled something, when the constable snapped, “Kaun jaati (Which caste)?” Unsure, Ajay paused and then hesitantly said, “Rajak”. The constable was not pleased with the response. He further inquired, “Biradari batao (Tell me the caste category). An inconsequential part of his life so far, Ajay’s caste identity, as part of a “Scheduled Caste”, was now to shape his 97-day stay in the prison.

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जेल: जहां सत्ता एकदम नंगी है | मनीष आज़ाद

तुम अकेले हो,

और कमरा भी बंद है,

कमरे में कोई आईना भी नहीं है,

अब तो अपना चेहरा उतार दो

बहुत पहले जावेद अख्तर के मुहं से ये पंक्तियाँ सुनी थी। जेल जाने के बाद ये पंक्तियाँ अक्सर मेरे दिमाग में गूंजती रहती थी। मजेदार बात ये है की जेल में सच में कोई आईना नहीं होता। पता नहीं ये पंक्तियाँ किस संदर्भ में लिखी गयी होंगी। लेकिन जेल के विशालकाय बंद दरवाजे के पीछे राज्य सत्ता यहाँ बिना किसी मुखौटे या आवरण के पूरा का पूरा मुझे नंगा नज़र आया। दरअसल यहाँ किसी आवरण की जरूरत भी नहीं है. क्योकि यहाँ किसी की निगरानी नहीं है।

सरकार या राज सत्ता द्वारा किये जाने वाले जिस भी अपराध को आप समाज में दबे छुपे रूप में देखते है, आपको उसका एकदम नंगा रूप यहाँ जेल में दिखाई देगा, चाहे वह भ्रष्टाचार हो या क्रूर दमन। कभी कभी लगता है की जेल बनाने का एक बड़ा कारण शायद ये रहा होगा की यहाँ सत्ता अपने स्वाभाविक यानि नंगे रूप में बिना किसी आवरण के थोडा आराम फरमा सके।  

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Short Releases, Long Sentences | Sahana Manjesh

Raju, a daily wage labourer was incarcerated at the age of 20 in the year 2000. He left behind two sisters and middle-aged parents. If Raju was to step out of prison for the first time now in 2020, the pandemic might be the last thing to bewilder him. In the time that he has been behind bars, his parents have passed away and he was not even able to attend their funerals. The house that belonged to his parents has since then been captured and sold off by encroachers. He was not around to contest the sale. His sisters have married in the meanwhile. His sisters’ husbands were not informed about his existence. In any case he no longer knows where they live. Raju worked on a handloom machine while in prison to earn some money, but those skills are not of much use in the real world. All his friends have grown up and moved to cities for work. 

How can he re-start his life outside prison? What real chance does he have at making a meaningful life?

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